यह बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती की बदलती रणनीति का संकेत था जब 23 जुलाई को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र अयोध्या से 'प्रबुद्ध विचार गोष्ठी’ की शुरुआत कर रहे थे. इससे पहले मिश्र ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से मुख्यत: ब्राह्मणों को रिझाने के लिए शुरू किए गए सिलसिलेवार आयोजन प्रबुद्ध विचार गोष्ठी का पोस्टर भी रिलीज किया.पोस्टर में अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के मॉडल के साथ भगवान राम और परशुराम का भी चित्र था. इसमें एक और खास बात नोटिस की जा रही थी: अभी तक बसपा के पोस्टरों में दिखने वाले नीले रंग का प्रयोग बस प्रतीक के तौर पर ही किया गया था. बाकी पूरे पोस्टर में भगवा रंग ही अधिकता में दिख रहा था.अयोध्या की गोष्ठी में जाने से पहले मिश्र ने रामलला और हनुमानगढ़ी के दर्शन करने के साथ सरयू नदी की आरती भी की. सियासी आयोजन से पहले मंदिरों के दर्शन करने की परंपरा बसपा में पहली बार दिखी थी.प्रबुद्ध विचार गोष्ठी की शुरुआत 21 पंडितों की ओर से एक साथ शंख बजाकर की गई. मिश्र ने अपने 45 मिनट के संबोधन में कई बार श्रीराम और परशुराम का जिक्र किया और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी पर राम के नाम पर लोगों को धोखा देने का आरोप भी लगाया.उत्तर प्रदेश के 60 से अधिक जिलों में आयोजित हो चुकी प्रबुद्ध विचार गोष्ठी के जरिए मिश्र ब्राह्मणों को लुभाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं. गोष्ठी आयोजन के इस सिलसिले का समापन 7 सितंबर को होगा जिसे बसपा सुप्रीमो मायावती संबोधित करेंगी. इस सम्मेलन में प्रदेश के 75 जिलों में तैनात बसपा के ब्राह्मण कोआर्डिनेटर शिरकत करेंगे.बसपा में अचानक आए इस बदलाव की वजह 23 जुलाई को अयोध्या में सम्मेलन की शुरुआत से पहले मिश्र के ट्वीट से जाहिर होती है,उत्तरप्रदेशःक्याबहनजीकरपाएंगीपलटवार जिसमें उन्होंने लिखा था: ''सत्ता की चाबी ब्राह्मण (13 प्रतिशत) और दलित (23 प्रतिशत) के हाथ में.’’ मिश्र हर ब्राह्मण सम्मेलन में यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि यूपी में बसपा के साथ अगर 13 फीसदी ब्राह्मण जुड़ता है तो 23 फीसदी दलित समाज के साथ मिलकर पार्टी की जीत पक्की है.वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने एक बार फिर दलित-ब्राह्मण गठजोड़ की उस रणनीति पर दांव लगाया है जिसके जरिए पार्टी ने 2007 में यूपी का विधानसभा चुनाव जीता था. बसपा के ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्र कहते हैं ''बसपा की सरकार में ब्राह्मणों को जितना सम्मान मिला उतना कभी किसी सरकार में नहीं मिला है.यूपी की योगी सरकार में ब्राह्मणों का जितना उत्पीड़न हुआ है उतना पहले कभी नहीं हुआ. ब्राह्मणों पर झूठे मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं.’’ ब्राह्मणों को लुभाने के लिए ही मिश्र ने उन सभी ब्राह्मणों की कानूनी मदद करने की घोषणा की है जो सरकार पर झूठे मुकदमे लगाकर फंसाने का आरोप लगा रहे हैं.वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए जमीनी स्तर पर संगठन का ढांचा मजबूत करने में जुटी बसपा के प्रबुद्ध विचार गोष्ठी के अगले चरण में बसपा प्रबुद्ध समाज मंडल संयोजक कमेटी का गठन किया जा रहा है. इसमें ब्राह्मण, ठाकुर के साथ दूसरी जातियों का भी प्रतिनिधित्व है लेकिन कमेटी की कमान ब्राह्मण समाज के नेता को दी जा रही है.बूथ स्तर पर ऊंची जातियों को बसपा से जोड़ने के लिए यह कमेटी बूथ सम्मेलनों का आयोजन करेगी. साथ ही यह कमेटी बसपा की पूर्व सरकार के दौरान किए गए लोकहित के कार्यों की जानकारी भी देगी. लखनऊ में विद्यांत पीजी कालेज में अर्थशास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर और दलितों के आर्थिक-सामाजिक ढांचे का अध्ययन करने वाले मनीष हिंदवी बताते हैं, ''2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा की सरकार बनाने में योगदान देने वाले ज्यादातर नेता आज मायावती के साथ नहीं हैं.ऐसे में दलित-ब्राह्मण सोशल इंजीनियरिंग को कारगर बनाने के लिए बसपा को बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी.’’ 2007 के विधानसभा चुनाव में यूपी की कुल 403 विधानसभा सीटों में से 206 सीटें जीत कर सरकार बनाने वाली बसपा 2017 के विधानसभा चुनाव में 19 सीटों पर सिमट गई थी. पिछले चार वर्षों के दौरान अनुशासनहीनता के आरोप में बसपा से 9 विधायक निलंबित हो चुके हैं.2019 में हुए विधानसभा उपचुनाव में आंबेडकर नगर की जलालपुर विधानसभा सीट बसपा हार गई थी. इसी वर्ष पंचायत चुनाव के बाद मायावती ने आंबेडकर नगर जिले से पार्टी के दो कद्दावर नेता और विधायक लालजी वर्मा और राम अचल राजभर को पार्टी से निष्कासित कर दिया था.वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती की सोशल इंजीनियरिंग के चलते 41 ब्राह्मण विधायक बसपा के टिकट पर चुनाव जीते थे, इनकी संख्या अब घटकर 4 रह गई है. मौजूदा समय में बसपा के पास ब्राह्मण चेहरे के तौर पर सतीश चंद्र मिश्र, गोरखपुर के चिल्लूपार से विधायक विनय तिवारी, पूर्व कैबिनेट मंत्री अनंत मिश्र, नकुल दुबे, रत्नेश पांडेय और हाल ही में पार्टी में वापसी करने वाले पवन पांडेय शामिल हैं.मनीष हिंदवी बताते हैं, ''मायावती के साथ तालमेल न बिठा पाने के कारण कई नेताओं ने या तो बसपा छोड़ दी या फिर वे पार्टी से निकाल दिए गए. इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इसने बसपा को कमजोर किया है.’’ 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद बसपा के 100 से ज्यादा पूर्व कोऑर्डिनेटर पार्टी छोड़ चुके हैं.बसपा से नाराज नेताओं की पहली पसंद समाजवादी पार्टी बनी है. बसपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ा था. इस चुनाव में बसपा के सांसदों की संख्या तो शून्य से बढ़कर 10 हो गई थी लेकिन सपा के 5 सांसद ही रहे. लोकसभा चुनाव के फौरन बाद बसपा और सपा की राहें जुदा हो गई थीं. पिछले वर्ष अक्तूबर में राज्यसभा चुनाव के दौरान सपा और बसपा के बीच तल्खी बढ़ गई थी.उस समय मायावती की ओर से भाजपा के प्रति नरम रुख दिखाए जाने पर बसपा के 7 विधायकों ने बगावत कर दी थी. पार्टी नेताओं का मानना है कि सपा की शह पर इन नेताओं ने बगावत की थी. नाराज मायावती ने विधायक चौधरी असलम अली, असलम राइनी, मुज्तबा सिद्दीकी, सुषमा पटेल, वंदना सिंह, हरगोविंद भार्गव और हाकिम लाल बिंद को निलंबित कर दिया. अटकलें हैं कि इनमें से कई विधायक 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के टिकट पर लड़ सकते हैं.अलीगढ़ की कोल विधानसभा सीट से पूर्व विधायक जमीरउल्लाह हाथी का साथ छोड़ साइकिल की सवारी शुरू कर चुके हैं. जमीरउल्लाह कहते हैं, ''यूपी में सपा की एकमात्र पार्टी है जो अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर देगी. बसपा ने भाजपा से अंदरूनी गठबंधन कर जनता के साथ छल किया है.’’ बसपा नेताओं का मानना है कि स्वार्थी नेताओं के हटने से पार्टी को और मजबूती मिलेगी.बसपा में पहली बार तैनात किए गए तीन प्रवक्ताओं में से एक धर्मवीर चौधरी बताते हैं, ''बसपा की विचारधारा न मानने वाले नेता अगर पार्टी छोड़कर जा रहे हैं तो पूर्व की अखिलेश यादव सरकार में मंत्री रहे राज किशोर सिंह जैसे वरिष्ठ नेता बसपा ज्वाइन भी कर रहे हैं. अगले 15 दिनों के भीतर बड़ी संख्या में दूसरी पार्टियों के नेता बसपा ज्वाइन करने वाले हैं.’’ ज्वाइन जो भी कर रहे हों, फिलहाल 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा की कामयाबी इस बात पर भी निर्भर है कि पार्टी अपना कुनबा कितना बचा पाती है. स्वामी प्रसाद मौर्य: बसपा संस्थापक कांशीराम के करीबी स्वामी प्रसाद मौर्य सपा सरकार के दौरान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे. बसपा से इस्तीफा देने के बाद 8 अगस्त, 2016 को मौर्य भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे. वर्तमान में योगी सरकार में श्रम विभाग के कैबिनेट मंत्री हैं. नसीमुद्दीन सिद्दीकी: कभी मायावती का दाहिना हाथ रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी यूपी में बसपा का मुस्लिम चेहरा थे. अनुशासनहीनता के आरोप में बसपा से निकाले गए पूर्व कैबिनेट मंत्री सिद्दीकी 22 फरवरी, 2018 को कांग्रेस में शामिल हो गए थे. वर्तमान में यूपी कांग्रेस मीडिया सेल के इंचार्ज हैं. लालजी वर्मा: कांशीराम के करीबी रहे आंबेडकर नगर की कटेहरी विधानसभा सीट से विधायक लालजी वर्मा बसपा विधानमंडल दल के पूर्व नेता थे. मायावती ने वर्मा को अनुशासनहीनता के आरोप में 4 जून, 2021 को बसपा से बाहर निकाल दिया है. फिलहाल वे किसी भी पार्टी में नहीं हैं. राम अचल राजभर: बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और अकबरपुर से पांच बार के विधायक रामअचल राजभर की गिनती मायावती के करीबी नेताओं में होती थी. मायावती ने राजभर को अनुशासनहीनता के आरोप में 4 जून, 2021 को बसपा से निष्कासित कर दिया. फिलहाल किसी पार्टी में नहीं. इंद्रजीत सरोज: पूर्व राज्यसभा सांसद इंद्रजीत सरोज की गिनती कभी मायावती के विश्वस्त नेताओं में होती थी. 2 अगस्त, 2017 को मायावती ने सरोज को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निष्कासित कर दिया था. 21 सितंबर, 2017 को वे सपा में शामिल हो गए. सुखदेव राजभर: आजमगढ़ के दीदारगंज से विधायक सुखदेव राजभर बसपा के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं. पिछले 1 अगस्त को उन्होंने एक सार्वजनिक पत्र लिखकर राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की और बेटे कमलकांत को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के हवाले करने का ऐलान किया. ब्रजेश पाठक: पूर्व सांसद ब्रजेश पाठक की पहचान बसपा के प्रभावी ब्राह्मण चेहरे के रूप में होती थी. 25 अगस्त 2016 को उन्होंने बसपा छोड़ भाजपा ज्वाइन की. 2017 के विधानसभा चुनाव में लखनऊ मध्य से वे भाजपा के विधायक बने और फिलहाल योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री का सुख भोग रहे हैं. रामवीर उपाध्याय: पूर्व कैबिनेट मंत्री रामवीर उपाध्याय पश्चिमी यूपी में बसपा का ब्राह्मण चेहरा थे. 21 मई 2019 को मायावती ने अनुशासनहीनता के आरोप में सादाबाद से विधायक रामवीर को बसपा से निष्कासित कर दिया था. 15 मई को रामवीर की पत्नी सीमा उपाध्याय भाजपा में शामिल. दयाराम पाल: कभी मायावती के करीबी रहे बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दयाराम पाल ने 20 सितंबर, 2019 को सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की मौजूदगी में हाथी की सवारी छोड़ साइकिल पर सवार हुए. पाल के साथ कई राज्यों में बसपा के प्रभारी रहे मिठाई लाल ने भी सपा ज्वाइन की थी. चंद्रदेव राम यादव: बसपा के संस्थापक सदस्यों में से एक कांशीराम के करीबी चंद्रदेव राम यादव ने दिसंबर, 2019 में मायावती पर उपेक्षा का आरोप लगाकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. पूर्व कैबिनेट मंत्री चंद्रदेव को 22 जुलाई, 2020 को अखिलेश यादव ने सपा की सदस्यता दिलाई थी. राम प्रसाद चौधरी: मायावती सरकार में मंत्री रहे राम प्रसाद चौधरी की गिनती पूर्वांचल के प्रभावी कुर्मी नेताओं में होती है. ये बस्ती के कप्तानगंज विधानसभा क्षेत्र से लगातार पांच बार विधायक रहे और एक बार खलीलाबाद लोकसभा सीट से सांसद भी बने. 20 जनवरी 2020 को यह सपा में शामिल हुए.